नगर की सड़कों व गलियों में लंबे समय से भटक रहा बुजुर्ग
कछौना(हरदोई)।भारतीय समाज में बुजुर्गों के प्रति सम्मान की एक लंबी परंपरा है लेकिन बदलते हुए समय में मानवीय मूल्यों में गिरावट आई है। वृद्ध अवस्था में शारीरिक असमर्थता के कारण परिवार जन बुजुर्गों से किनारा कर लेते हैं।
कछौना कस्बे में लंबे अरसे से एक बुजुर्ग व्यक्ति बिना देखभाल के देवास जिंदगी जीने को विवश है। परिजनों ने उसे लावारिस अवस्था में छोड़ दिया है। वह सुबह होते ही चल पाने में असमर्थ होने के कारण पैदल ही किसी तरीके से चलकर लोगों से भोजन की मांग कर जीवन बसर कर रहा है। उसकी बदहाली पर शासन-प्रशासन व अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता कहने वालों को शर्म नहीं आती है। वह अपना नाम-पता भी सही तरीके से नहीं बता पा रहा है। वहीं कई संस्थाएं बुजुर्गों के नाम पर वृद्धावस्था आश्रम चलाकर सरकार का लाखों रुपयों का बजट डकार रही हैं। इस बुजुर्ग की बदहाल स्थिति पर मानवता तार-तार हो रही है। इस निराश बुजुर्ग के सामने कोई भी आशा की किरण नहीं दिखाई पड़ रही है। चंद दिनों बाद इस बुजुर्ग की अंतिम यात्रा किसी गली या सड़क किनारे समाप्त हो जाएगी, तब प्रशासन अज्ञात लाश का पंचनामा करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेगा।
वर्तमान समय में लोग अपनी जिंदगी जीने में व्यस्त हैं। मानवता की दृष्टि से इस बुजुर्ग की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ने चाहिए। क्या मानवता की बातें मंदिर, मस्जिद व गुरुद्वारों में ही अच्छी लगती हैं.....?