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ओलंपिक खेलों में देश की बेटियों ने भारतीय संस्कृति और देश का मान बढ़ाया है उनके लिए कुछ पंक्तियां _

आज मेरे स्वप्न...... आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं, बंद करके रखे थे जो कभी संदूक में, आज वो ही फिर से विस्तार ले रहे हैं। आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं...... नापने को ये धरा क्या नभ भी पड़ जाए न कम, कदमों को हम फिर से नई रफ्तार दे रहे हैं।

आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं...... लहराएगा परचम हमारा जाके फिर आकाश में, पंखों को अपने हौसलों की उड़ान दे रहे हैं। आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं...... आजमा ले जितना भी ये जमाना हमको मगर, मंजिलों को रास्ते भी अब आवाज़ दे रहे हैं। आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं...... मावस की रात सा तम हो कितना भी घना, बन के दीप पथ को खुद उजियार दे रहे हैं। आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं...... मुट्ठियों में भींच कर रखे थे जितने शब्द कोष, लेखनी से उनको नई धार दे रहे हैं। आज मेरे स्वप्न फिर आकार ले रहे हैं.....

. [ ठाकुर दिवाकर सिंह ] $ऑल इण्डिया मीडिया एसोसिएशन फतेहपुर$

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