
दिखावे का दौड़ और मध्यम वर्ग की ऋणग्रसता: एक सामाजिक विमर्श ।
मनुष्य का हृदय धन के लोभ से नहीं,बल्कि झूठी शान की ललक से बिगड़ता है ।
वह दिखावे के लिए जीते हुए स्वय को ऋण के दल दल में धंसता जाता है ।
-मुंशी प्रेम चंद्र
भारत का मध्य वर्ग—जो देश की अर्थव्यवस्था की धुरी माना जाता है—आज एक गंभीर "दिखावे की दौड़" (Race for Show-off) में फँस गया है। एक तरफ़, देश के अमीर लोग अपनी दौलत को व्यवस्थित निवेशों (Systematic Investments) के ज़रिए तेज़ी से बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़, मध्य वर्ग 'कर्ज' (ऋण) लेकर ऐसी चीज़ों पर खर्च कर रहा है जिनका प्राथमिक उद्देश्य केवल "दूसरों को प्रभावित करना" है। यह प्रवृत्ति अब महज़ एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि देश के वित्तीय स्वास्थ्य (Financial Health) के लिए एक चेतावनी बन चुकी है।
'बिज़नेस टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 से मई 2025 तक भारतीयों ने 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का पर्सनल लोन लिया है। यह दिखाता है कि लोग बुनियादी ज़रूरतों के लिए नहीं, बल्कि तत्काल इच्छाओं (Instant Gratification) और अनावश्यक खर्चों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में उधार ले रहे हैं।
इस ऋण का एक बड़ा हिस्सा युवा नौकरीपेशा लोगों का है, जो यह दर्शाता है कि नई पीढ़ी अपनी आय की स्थिरता से पहले ही खुद को ईएमआई के बोझ तले दबा रही है।
चार्टर्ड अकाउंटेंट "नितिन कौशिक" ने अपनी रिपोर्ट में सही चेतावनी दी है कि यह 'दिखावे की जीवनशैली' जीने की आदत देश के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। उनका मानना है कि आज हर दूसरा भारतीय किसी न किसी लोन में फँसा हुआ है।
मध्य वर्ग बैंक या वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर ऐसी अनुत्पादक चीज़ें (Non-Productive Assets) खरीद रहा है, जिनका मूल्य समय के साथ घटता जाता है—जैसे कि महंगे गैजेट्स, ब्रांडेड कपड़े, या भव्य समारोह।
दिखावे की यह दौड़ केवल उपभोक्ता वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह निवेश के क्षेत्र में भी जोखिम पैदा कर रही है:
आज डेमैट खातों (Demat Accounts) की संख्या 19 करोड़ पार कर गई है। यह स्वागत योग्य है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि कई युवा लोन लेकर शेयर बाज़ार में पैसा झोंक रहे हैं।
लेकिन जब पैसा उधार लेकर बाज़ार में लगाया जाता है, तो वह निवेश कम और उच्च-जोखिम वाला सट्टा (Speculation) अधिक बन जाता है। यदि बाज़ार में गिरावट आती है, तो ये युवा न केवल अपना निवेश खोते हैं, बल्कि उन्हें उस ऋण की ईएमआई भी चुकानी पड़ती है।
इस तरह, मध्य वर्ग अमीर बनने के लिए व्यवस्थित निवेश (जैसे एसआईपी या म्यूचुअल फंड) अपनाने के बजाय, त्वरित लाभ (Quick Money) की लालच में ऋण के जाल को गले लगा रहा है।
अमीर वर्ग की रणनीति सीधी है: वे ऋण (Loan) लेते हैं, लेकिन केवल उत्पादक संपत्ति (Productive Assets) बनाने के लिए—जैसे बिज़नेस का विस्तार करना, किराए पर देने के लिए रियल एस्टेट खरीदना, या ऐसी चीज़ों में निवेश करना जो आय पैदा करें। वे ऋण को एक उपकरण के रूप में देखते हैं, जो उनकी दौलत बढ़ाने में मदद करता है।
इसके विपरीत, मध्य वर्ग ऋण को उपभोग (Consumption) का साधन मानकर अपनी आय को ईएमआई में बाँध रहा है।
भारत के मध्य वर्ग को इस दिखावे की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। सामाजिक प्रभाव (Social Influence) अस्थायी होता है, जबकि वित्तीय स्वतंत्रता (Financial Freedom) स्थायी सुख देती है। जिस तरह अमीर वर्ग दौलत बनाने में लगा है, मध्य वर्ग को भी उपभोग छोड़कर निवेश को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि देश के वित्तीय स्वास्थ्य को मजबूत किया जा सके।
मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT