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अजमेर नगर निगम: 5 साल का कार्यकाल या नाकामियों का सफर? महापौर हाड़ा के नेतृत्व पर सवाल

अजमेर....

अजमेर नगर निगम के वर्तमान बोर्ड का 5 साल का कार्यकाल पूरा होने को है। जब भाजपा का बोर्ड बना और श्रीमती ब्रजलता हाड़ा ने महापौर की कुर्सी संभाली, तो शहरवासियों को उम्मीद थी कि 'स्मार्ट सिटी' अजमेर को विकास की नई रफ्तार मिलेगी। लेकिन, धरातल पर स्थिति इसके विपरीत नजर आई। पिछले 5 वर्षों में शहर की जनता ने विकास से ज्यादा विवाद देखे हैं।
​यहाँ अजमेर नगर निगम की उन प्रमुख विफलताओं का विश्लेषण है, जिन्होंने आम जनता को सबसे ज्यादा परेशान किया:
​1. सफाई व्यवस्था का चरमराना (Swachh Survekshan Ranking Drop)
​महापौर हाड़ा के कार्यकाल की सबसे बड़ी आलोचना शहर की सफाई व्यवस्था को लेकर होती रही है।
​गंदगी के ढेर: शहर के मुख्य बाजारों से लेकर रिहायशी इलाकों तक, जगह-जगह कचरे के ढेर आम हो गए। डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की व्यवस्था कई बार ठप हुई।
​रैंकिंग में गिरावट: स्वच्छ सर्वेक्षण में अजमेर की रैंकिंग में सुधार की बजाय गिरावट दर्ज की गई। जो शहर कभी स्वच्छता में ऊपर आता था, वह अब पिछड़ता जा रहा है। संसाधन होने के बावजूद प्रबंधन (Management) की कमी साफ दिखाई दी।
​2. आवारा मवेशियों का आतंक (Stray Cattle Menace)
​अजमेर की सड़कों पर आवारा सांड और गायें राहगीरों के लिए जानलेवा साबित हुए हैं।
​पिछले 5 सालों में कई बार निगम की साधारण सभाओं में यह मुद्दा गूंजा, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला।
​कांजी हाउस की क्षमता और व्यवस्था पर हमेशा सवाल उठे। मवेशियों के कारण हुई दुर्घटनाओं में कई नागरिकों को चोटें आईं और कुछ की जान भी गई, जिसे रोकने में निगम प्रशासन पूरी तरह विफल रहा।
​3. महापौर बनाम आयुक्त विवाद (Internal Politics & Infighting)
​इस कार्यकाल की सबसे बड़ी 'सुर्खी' विकास नहीं, बल्कि "महापौर बनाम प्रशासन" की लड़ाई रही।
​महापौर ब्रजलता हाड़ा और तत्कालीन निगम आयुक्तों के बीच का टकराव जगजाहिर रहा। फाइलों को रोकने, काम न करने और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में ही लंबा समय बर्बाद हुआ।
​विवाद इतना बढ़ा कि राज्य सरकार (तत्कालीन कांग्रेस सरकार) द्वारा महापौर को निलंबित (suspend) भी किया गया, हालांकि बाद में उन्हें कोर्ट से राहत मिली। इस राजनीतिक खींचतान का सीधा खामियाजा शहर के विकास कार्यों को भुगतना पड़ा।
​4. सड़कों और ड्रेनेज की बदहाली
​'स्मार्ट सिटी' के नाम पर खुदी हुई सड़कों ने जनता का जीना मुहाल कर दिया।
​टूटी सड़कें: शहर की अंदरूनी कॉलोनियों की सड़कें खस्ताहाल हैं। पेचवर्क के नाम पर खानापूर्ति की गई, जो पहली ही बारिश में बह गई।
​जलभराव: आनासागर के कैचमेंट एरिया और शहर के निचले इलाकों में बारिश के दौरान जलभराव की समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया। नालों की सफाई के दावे मानसून में झूठे साबित हुए।
​5. पट्टा वितरण और भ्रष्टाचार के आरोप
​प्रशासन शहरों के संग अभियान हो या सामान्य पट्टा वितरण, निगम पर फाइलों को लटकाने और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे।
​आम जनता को छोटे-छोटे कार्यों, जैसे जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र या नाम हस्तांतरण के लिए भी निगम के चक्कर काटने पड़े।
​पार्षदों ने खुद कई बार अपनी ही बोर्ड की कार्यप्रणाली और अधिकारियों की मनमानी के खिलाफ धरने दिए, जो निगम की आंतरिक विफलता को दर्शाता है।
​6. अवैध निर्माण और अतिक्रमण
​शहर में अवैध निर्माण और अतिक्रमण की बाढ़ आ गई।
​आनासागर झील के आसपास और मुख्य बाजारों में अवैध निर्माण धड़ल्ले से हुए। निगम की कार्रवाई अक्सर दिखावटी रही या केवल गरीबों के ठेले हटाने तक सीमित रह गई, जबकि बड़े रसूखदारों पर कार्रवाई करने में निगम के हाथ कांपते नजर आए।

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