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विषय – विस्थापितों के अधिकार, अतिक्रमण विवाद और बोकारो हवाई अड्डा संचालन पर उत्पन्न नई चुनौतियाँ।*

जनता जागरूकता हेतु खुला पत्र

*विषय – विस्थापितों के अधिकार, अतिक्रमण विवाद और बोकारो हवाई अड्डा संचालन पर उत्पन्न नई चुनौतियाँ।*

बोकारो एवं आसपास के क्षेत्रों के सभी जागरूक नागरिकों को सादर प्रणाम।
पिछले कुछ दिनों से धनबाद क्षेत्र की राजनीति तथा बोकारो हवाई अड्डा संचालन को लेकर जिस प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं, वह न सिर्फ विस्थापितों के अधिकारों पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि विकास कार्यों को अनावश्यक विवादों में उलझाने का प्रयास भी प्रतीत होता है। विस्थापित परिवारों की पीड़ा, उनका संघर्ष और उनके भविष्य की चिंता हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
धनबाद के लोकप्रिय सांसद माननीय श्री ढूलू महतो जी द्वारा संसद में अधिग्रहित जमीन एवं विस्थापितों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाना सराहनीय था। परंतु हाल ही में यह चिंता तब और बढ़ गई जब यह जानकारी सामने आई कि अतिक्रमण रोकने तथा बोकारो हवाई अड्डे के संचालन को सक्षम बनाने में असमर्थता जताई गई है। जबकि बोकारो प्रबंधन एवं जिला प्रशासन दोनों ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि हवाई अड्डे के संचालन में तकनीकी या प्रशासनिक कोई बड़ी बाधा नहीं है—मुख्य समस्या सिर्फ अधिग्रहित भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण एवं विवाद को लेकर है।
यह भूमि बोकारो स्टील प्लांट निर्माण के समय विस्थापितों से ली गई थी, और यह सर्वविदित है कि विस्थापितों को आज तक उनके उचित अधिकार और सुरक्षा पूरी तरह नहीं मिल सकी है। ऐसे में जब एक लोकप्रिय जनप्रतिनिधि द्वारा उसी अधिग्रहित भूमि पर झोपड़पट्टियों को बनाए रखने का समर्थन मिलता है, तो स्वाभाविक रूप से विस्थापितों में असंतोष और अविश्वास बढ़ना ही था। जनता यह प्रश्न पूछने का पूरा अधिकार रखती है कि—
क्या अधिग्रहित भूमि का उपयोग मूल उद्देश्य के विरुद्ध किया जा सकता है?
क्या यह न्यायसंगत है कि विस्थापितों के अधिकार कमजोर पड़ें और अस्थायी बस्तियों को राजनीतिक संरक्षण मिले?
हवाई अड्डे का संचालन सिर्फ बोकारो ही नहीं, पूरे झारखंड की प्रगति से जुड़ा हुआ है। इससे व्यापार, रोजगार, पर्यटन और उद्योग को नया आयाम मिलता, परंतु वर्तमान विवाद ने इस विकास यात्रा को अनिश्चितता में डाल दिया है। अतिक्रमण के नाम पर विस्थापितों और झोपड़पट्टीवासियों को आमने-सामने खड़ा करना किसी भी दृष्टिकोण से समाजहित में नहीं है। इससे न तो किसी वर्ग का भला होगा और न ही क्षेत्र के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
आज जरूरत है कि हम सभी स्थानीय नागरिक, विस्थापित परिवार, समाज के प्रबुद्धजन और युवा—एक स्वर में यह संदेश दें कि विकास किसी एक वर्ग का नहीं, पूरे क्षेत्र का अधिकार है।
राजनीतिक शक्ति का उपयोग यदि विस्थापितों के अधिकार कमजोर करने या अतिक्रमण को संरक्षण देने के लिए होगा तो यह न सिर्फ अन्याय है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के साथ भी छल के समान है।
हम सभी को शांतिपूर्ण, तथ्यपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपना मत प्रकट करना होगा। प्रशासन को भी चाहिए कि बिना किसी दबाव के अधिग्रहित भूमि से जुड़े मूल दस्तावेज, अधिकार और कानूनी स्थिति स्पष्ट करे, ताकि भ्रम और विवाद दोनों समाप्त हो सकें।
हवाई अड्डा बोकारो की बहुप्रतीक्षित आवश्यकता है—इसे किसी तरह की राजनीति का शिकार नहीं बनना चाहिए।
अंत में, यह संदेश सिर्फ विरोध का नहीं, बल्कि जागरूकता, एकता और अधिकार संरक्षण का है।
विस्थापितों का सम्मान, भूमि का सही उपयोग और बोकारो का विकास—यही हमारा सामूहिक ध्येय होना चाहिए।

आप सभी का जागरूक सहयोग ही इस संघर्ष को सही दिशा दे सकता है।
अर्जुन महतो (विस्थापित)
राष्ट्रीय महासचिव , राष्ट्रीय कुम्हार महासभा।

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