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𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 ℙ𝕒𝕥𝕙 𝕠𝕗 𝕂𝕟𝕠𝕨𝕝𝕖𝕕𝕘𝕖 Vedanta 2.0- ज्ञान योग अज्ञात अज्ञानी

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Vedanta 2.0- ज्ञान योग

ज्ञान की मूल धारा यह नहीं है कि अधिक जान लिया जाए,
बल्कि यह देख लिया जाए कि जानने वाला कौन है।

ज्ञान का अर्थ शास्त्र नहीं है,
दुनिया का ज्ञान भी नहीं है।
ज्ञान का अर्थ है — समझ।

और वह समझ केवल एक बिंदु पर सिमट जाती है:
“मैं कौन हूँ?”

इतना ज्ञान पर्याप्त है।
एक प्रश्न — और वही अंतिम प्रश्न।

ध्यान को समझने के लिए भी यह समझ आवश्यक है।
बिना ज्ञान के ध्यान केवल एक अभ्यास बन जाता है,
गंभीरता आती है, पर सत्य नहीं।

भक्ति में भी अगर समझ नहीं है,
तो भक्ति अंधी है।
और अंधी भक्ति धर्म का हिस्सा बन जाती है,
सत्य का नहीं।

कर्म भी बिना ज्ञान के असंभव है।
क्योंकि बिना समझ के कर्म केवल अहंकार की गतिविधि है।
पशु भी कर्म करते हैं —
अच्छे कर्म करना अपने आप में योग नहीं है।

पश्चिम में भक्ति को कोई नहीं समझता,
क्योंकि वहाँ यह स्वाभाविक नहीं है।
भक्ति समझ के बिना केवल भावुकता है।

इसलिए एकमात्र श्रेष्ठ तत्व है — समझ।

जब यह समझ मिलती है कि
“मैं कौन हूँ”,
तब यह समझ कोई बड़ी कठिन चीज़ नहीं लगती।

क्योंकि जब देखने पर पता चलता है कि
“मैं” कहीं स्थिर ही नहीं है —
न विचार में,
न शरीर में,
न इच्छा में।

तभी प्रश्न उठता है —
मैं कौन हूँ?

और जैसे ही यह प्रश्न सच्चाई से उठता है,
अंदर का पर्दा गिरने लगता है।
अहंकार गुरु भी बनना छोड़ देता है।

इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है।
और इसीलिए यह प्रश्न मौलिक है।

जब हम दूसरों को समझते हैं, जानते हैं,
तो वही प्रक्रिया अपने भीतर मुड़ जाती है।

जैसे कोई यंत्र कहे —
“मैं एक बनाया हुआ यंत्र हूँ” —
तब उसका अस्तित्व स्पष्ट है।

वैसे ही जब मनुष्य स्वयं को समझने जाए,
तो सच्चा उत्तर यही मिलता है —

“मैं तो कहीं नहीं हूँ।”

उस क्षण विचार रुक जाता है,
तर्क मूर्छित हो जाता है,
इच्छा पत्थर हो जाती है।

यही मृत्यु है।
और यहीं सत्य का जन्म होता है।
✦ 𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 𝕋𝕙𝕖 𝕌𝕟𝕚𝕧𝕖𝕣𝕤𝕒𝕝 𝕍𝕚𝕤𝕚𝕠𝕟 𝕠𝕗 ℂ𝕠𝕟𝕤𝕔𝕚𝕠𝕦𝕤𝕟𝕖𝕤𝕤 · वेदान्त २.० — चेतना का वैश्विक दृष्टिकोण — 🙏🌸 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕥 𝔸𝕘𝕪𝕒𝕟𝕚

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