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“आरक्षण: जरूरतमंद तक पहुँच रहा है या सिर्फ मलाईदार वर्ग तक सिमटा?—नियमों में बदलाव की मांग”

भारतीय संविधान निर्माताओं ने आरक्षण की व्यवस्था इसलिए की थी ताकि—सदियों से शोषण और सामाजिक भेदभाव झेल रहे समाज को बराबरी का मौका मिले। शिक्षा, रोजगार और राजनीति में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो।
पर जमीनी सच्चाई ये है की मलाईदार वर्ग (Creamy Layer): SC/ST/OBC में से वही परिवार लगातार आरक्षण का लाभ उठाकर उच्च पदों और सुविधाओं तक पहुँच गए हैं। उनके बच्चों को भी शिक्षा, संसाधन और अवसर बेहतर मिलते हैं, और वे भी आरक्षण का लाभ ले लेते हैं। दूसरी तरफ, झुग्गी-बस्तियों, मज़दूरी और दैनिक जीवन संघर्ष में लगे असली जरूरतमंद परिवार बार-बार वंचित रह जाते हैं।
मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए Creamy Layer का प्रावधान है — जिनकी पारिवारिक आय ₹8 लाख से अधिक है, वे आरक्षण लाभ नहीं ले सकते। लेकिन SC/ST वर्ग के लिए ऐसी कोई सीमा तय नहीं है। परिणामस्वरूप, एक ही वर्ग के सम्पन्न परिवार लगातार लाभ उठाते हैं और ग़रीब परिवार पीछे छूट जाते हैं।
अब सवाल ये उठता है की , क्या आरक्षण का उद्देश्य सिर्फ़ पीढ़ी-दर-पीढ़ी विशेषाधिकार देना है? क्या अब समय नहीं आ गया है कि SC/ST वर्ग में भी "Creamy Layer" जैसी व्यवस्था लागू की जाए? क्या आरक्षण की समीक्षा हर 10-15 साल में होनी चाहिए, ताकि यह देखा जा सके कि असल लाभ किसे मिल रहा है?
आरक्षण का मकसद “समान अवसर” देना था, न कि “पीढ़ी दर पीढ़ी विशेषाधिकार” बनाना। अब यह बहस ज़रूरी है कि आरक्षण की व्यवस्था में सुधार किया जाए ताकि यह सचमुच वास्तविक जरूरतमंद तक पहुँचे।
“आज का बड़ा सवाल यही है कि आरक्षण का लाभ किसे मिलना चाहिए? जिन्होंने आरक्षण की मदद से ऊँचे पद पा लिए हैं, उन्हें सम्मानपूर्वक मुख्यधारा में आगे बढ़ना चाहिए और जगह छोड़नी चाहिए, ताकि जो अब भी मलिन बस्तियों और मज़दूरी में संघर्षरत हैं, वे इस अवसर का लाभ ले सकें। असली सामाजिक न्याय तभी होगा जब आरक्षण ‘जरूरतमंद’ के दरवाज़े तक पहुँचे।”

“आरक्षण की समीक्षा समय की मांग — आर्थिक आधार पर लागू हो नीति, अन्यथा देश में असंतोष गहराएगा”
वर्तमान सच्चाई यह है की , आज भारत में सामान्य वर्ग (General Category) के करोड़ों लोग ग़रीबी, बेरोज़गारी और जीवन स्तर में गिरावट से जूझ रहे हैं।
खेती-किसानी पर संकट,मज़दूरी पर निर्भरता, बढ़ती महँगाई और घटते रोज़गार के अवसर—
इन सबने सामान्य वर्ग की स्थिति बेहद दयनीय बना दी है।
2. आरक्षण व्यवस्था का स्वरूप- संविधान में आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को अवसर देना था। परंतु समय के साथ यह व्यवस्था जातिगत पहचान तक सीमित रह गई, जबकि वास्तविक ग़रीब चाहे किसी भी जाति का हो, उसकी हालत जस की तस बनी रही। सरकारों पर यह आरोप भी लगता है कि उनकी सवर्ण विरोधी मानसिकता के कारण सामान्य वर्ग के गरीबों को योजनाओं और अवसरों से लगातार वंचित किया जा रहा है।
आर्थिक आधार पर आरक्षण की ज़रूरत -सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में EWS (Economically Weaker Section) आरक्षण को मंजूरी दी, जिससे सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10% आरक्षण मिला। लेकिन ज़मीनी हकीकत में यह व्यवस्था अभी भी सीमित और अपर्याप्त है। ग़रीबी का दर्द जाति देखकर नहीं आता, बल्कि हर वर्ग में मौजूद है। इसलिए अब ज़रूरत है कि आरक्षण को पूरी तरह आर्थिक आधार पर लागू किया जाए।
संभावित खतरा-यदि सरकारें इस वास्तविकता को नज़रअंदाज़ करती रहीं, तो समाज में असंतोष बढ़ेगा, वर्गीय टकराव की स्थिति बनेगी,और यह असंतोष कभी भी भीषण संघर्ष या गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर सकता है। यह स्थिति देश की एकता, विकास और सामाजिक सामंजस्य के लिए घातक होगी।
आरक्षण की समीक्षा अब अनिवार्य है। यह समीक्षा जातिगत आधार से हटकर आर्थिक आधार पर केंद्रित होनी चाहिए। तभी असली ग़रीब को न्याय मिलेगा और समाज में संतुलन बनेगा।
“देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बाहरी शत्रु नहीं, बल्कि आंतरिक असमानता और भेदभाव है। जब तक आरक्षण की नीति आर्थिक आधार पर नहीं ढलेगी, तब तक सामान्य वर्ग के ग़रीब और दलित-पिछड़े वर्ग के असली जरूरतमंद दोनों ही वंचित रहेंगे। समय की मांग है कि सरकार साहस दिखाए, आरक्षण की ईमानदार समीक्षा करे और इसे आर्थिक आधार पर लागू करे। यही सच्चा सामाजिक न्याय होगा और यही देशहित के लिए अच्छा होगा ।”
✍️ महेश प्रसाद मिश्रा भोपाल----

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