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कर्म काण्ड आचार्य परिषद एवं सर्व ब्राह्मण समाज ने संयुक्त रूप से मनाई परशुराम जयंती


आज परशुराम जयंती के पावन पर्व पर राम जानकी पंचायती मंदिर बनखेडी मे भगवान परशुराम का भव्य पूजन किया जिसमै राजेन्द्र शर्मा जी जितेन्द्र जी भार्गव  ओमप्रकाश जी  पचौरी रहे साथ ही अपनी अनुपम वेदवाणी से श्री अतुल जी शास्त्री कमलकिशोर जी शास्त्री प्रदीप जी शास्त्री ने पूजन अर्चन हवन कराते हुए ईश्वर से प्रार्थना की।

यह कोरोना महामारी सीघ्र समाप्त हो और सभी जन आनंदमय रहे  अक्षय तृतीया के दिन ही हर साल परशुराम जयंती मनाई जाती है. हालांकि कई बार पंचांग में भेद की वजह से यह एक तिथि आगे या पीछे भी हो सकती है. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम आज भी जीवित हैं. इस बार कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण परशुराम जयंती लॉकडाउन में पड़ी है. इस वजह से परशुराम जयंती बेहद शान्ति के साथ मनाई गयी और कोई भी धार्मिक समारोह या शोभा यात्रा नहीं निकाली गयी  आइए जानते हैं कि कौन थे परशुराम...
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, परशुराम त्रेता काल में ऋषि जमदग्नि के घर परशुराम का जन्म हुआ था।

उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है. यही वजह है कि उन्हें समय-समय पर भगवान परशुराम के नाम से भी संबोधित किया गया. वैसे हाथों में हमेशा एक अस्त्र परशु रखने के कारण भी उन्हें परशुराम नाम दिया गया. पुराणों में में इस अस्त्र परशु का खूब उल्लेख मिलता है।मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम के परशु अस्त्र में चमत्कारिक शक्तियां थीं और ये खुद भगवान शिव ने उन्हें दिया था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवराज इन्द्र ने महर्षि जमदग्नि के पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर ऋषि की पत्नी रेणुका को परशुराम के जन्म का आशीर्वाद दिया था. उनका वास्तविक नाम जामदग्न्य था. पिता भृगु ऋषि ने नामकरण संस्कार के तहत उनका नाम राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा दिया हुआ परशु लेने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ा।

यह भी कहा जाता है कि, परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे. इन्होंने धरती पर 21 बार दुराचार करने वाले क्षत्रियों का संहार किया था. गणेश भगवान को भी इनके गुस्से का शिकार होना पड़ा था. क्रोध के कारण परशुराम जी ने गणेश भगवान पर फरसे का वार कर दिया था जिससे उनका एक दांत टूट गया था. मान्यता है कि परशुराम जयंती से ही सतयुग प्रारंभ हुआ था. और कुछ ग्रामों में भी विप्र समाज ने अपने घर अपने अपने घरों में परशुराम जयंती भगवान प्रसन्न का पूजन किया ग्राम ग्राम मछेरा में भी अशोक भार्गव जी के निवास पर भगवान परशुराम का पूजन किया गया

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