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हमेशा पूज्यनीय रही है मातृशक्ति, 30 प्रतिशत ही क्यों, हर क्षेत्र में मिले बराबर का अधिकार

आज हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। हर कोई महिलाओं को सशक्त बनाने की मांग करते हुए उन्हें अधिकार संपन्न बनाने की बात करते हुए उनका गुणगान कर रहा है। जहां तक मुझे लगता है। अपने देश में ही नहीं पूरी दुनिया में मातृशक्ति हमेशा से ही सम्मान और सर्वशक्ति संपन्न तथा हमें अच्छे  कार्य करने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त राक्षसों का नाश करने के साथ साथ एक दूसरे से प्रेम करने और भाईचारा बनाए रखने और मदद करने का संदेश देती रही है। 

इसके बावजूद वर्तमान समय में चारों तरफ जिससे से भी सुनों वो महिलाओं को बराबर का दर्जा देने की बात करते नहीं थकता। सवाल यह उठता है कि मां-बहन बेटी सहित कई रूपों में हमेशा से ही नारी शक्ति का मान सम्मान होता रहा है। तो अब इस संदर्भ में जो यह कहा जा रहा है वो क्यों। तो यही कहा जा सकता है कि एक महिला जब जन्म लेती है तो अपनी किलकारियों और फिर अपनी बातों से सबको बांधे रखने में सफल रहती है। और बड़े होने पर एक नहीं दो परिवारों की भलाई और प्रगति का माध्यम बनती है। शायद इसीलिए कहते हैं कि महिला पढ़ेगी आगे बढ़ेगी तो देश तरक्की करेगा। मेरा मानना है कि इससे परिवार जुड़ेंगे समाज में भाईचारा और अपनेपन की भावना पैदा होगी। इसलिए यह कह सकते हैं कि पढ़ी लिखी बेटियां समाज को शिक्षित करने के साथ एकता के एक सूत्र में पिरोने का माध्यम भी बनती है। 

वर्तमान में क्षेत्र  चाहे कोई भी हो अपनी योग्यता से हमारी बेटियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता का झंडा फहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। मेरा तो मानना है कि विश्व में किसी भी मैनेजमेंट काॅलेज से पढ़ लिखकर कोई कितना बड़ा मैनेजमेंट गुरू नहीं बन सकता जितना हमारी बेटियों का मैनेजमेंट है जो  घर चलाने से लेकर परिवार की व्यवस्थाएं बनाने में जो काम करता है वो प्रशंसनीय है। 

इसकी जीती जागती मिशाल के रूप में आकस्मिक रूप से पिछले वर्ष प्रकाश में आई महामारी कोरोना के लाॅकडाउन में जब सारे काम बंद थे। पुरूष और बच्चे घर से नहीं निकल सकते थे। ऐसे में वो डिपे्रशन का शिकार हो सकते थे लेकिन हमारी माता बहनों ने अपनी पाक कला तथा घर संभालने के गुणों और मैनेजमेंट के चलते खुद को तो संभाला ही। घर के पुरूषों और बच्चों को भी संभालने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। 
एक समय था जब स्कूलों में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई लोधी, अहिल्या बाई होल्कर, जैसी विद्वान और वीर नारियों के बारे मेें पढ़ाया जाता था जिससे यह कह सकते हंै  कि दुनिया की आधी आबादी महिलाएं कभी कमजोर नहीं रहीं। हां अब इसे व्यवस्था की कमी कहें या कुछ और। माता बहनों के साथ ही पुरूषों को भी घर से निकलने के लिए भयमुक्त वातावरण की स्थापना और अहसास की आवश्यकता है। हमारी सरकारें महिला सशक्तिकरण और उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। अब हर मंडल मुख्यालय पर महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए महिला पुलिस चैकी और केंद्र खुलने जा रहे हैं। जगह जगह महिला थाने भी खुले है। मगर मुझे लगता है कि इनके साथ साथ अगर हम पुलिस को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति सजग बनाएं और अपना कार्य जिम्मेदारियों से करने में अक्षम रहने वालों पर कार्रवाई करें या महिला के साथ कोई घटना होती है तो शिकायत पर उसकी जांच कर कार्रवाई करने की प्रवृति पैदा की जाए। महिला दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों में थाने में फैसले कराने की जो प्रवृति जो बड़े लोगों में पनप रही है उसे ठीक नहीं कह सकते। 
वर्तमान समय में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए हमारे नेता पिछले कई सालों से राजनीति में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करते हैं। लेकिन आज तक शायद यह लागू नहीं किया गया। और जब कोई ऐसा मामला आता है तो कहा जाता है कि सक्षम मंच पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है। इस संदर्भ में यही कह सकता हंू कि आप अपने दल में तो महिलाओं को इतना मौका देकर लोकसभा विधानसभाओं राज्यसभाओं और विधानपरिषदों में पहुंचा सकते हैं। बाकी काम आरक्षण और अपने अधिकार लेने का कार्य महिलाएं अपने आप कर लेंगी। जहां तक मेरा मानना है उसके हिसाब से जब देश में सबके बराबर के अधिकार हैं तो आधी आबादी को उसकी बराबर का हिस्सा देने सें कौन रोकता है। 
मातृशक्ति और उसकी सेवा भाव की इच्छा शक्ति का अंदाज हम इस बात से लगा सकते हैं कि तमिलनाडु के एक जिले में जन्मी वर्तमान में 105 वर्षीय पप्पमाला सेलेब्रिटी के रूप में देखी जा सकती हैं और उन्हें पदमश्री पुरस्कार भी मिल चुका बताते हंै। एक छोटी सी जगह में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के 13 कुलपति उनके प्रशंसक बने हेैं। झारखंड में महिलाएं अपने दम पर पानी का अभाव झेल रहे क्षेत्रों को हरा भरा बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। 
कहते हैं कि महिलाएं जिददी होती हैं। मुझे लगता है कि इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि जो अपनी बात नहीं कह सकता या जिद नहीं कर सकता वो कोई भी काम पुरा करने में शायद सक्षम ना रहे इसलिए माता बहनों को जिददी होना चाहिए लेकिन यह परिवार को बांधे रखने और उसके       संचालन में किसी भी रूप में आड़े ना आए तो यह समाज हित में है। और इसका लाभ हो सकता है। और इस संदर्भ में जीता जागता सबूत अपने देश में पिछले कई दशक का इतिहास देखें तो मिल सकता है। मैं इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आधी आबादी मातृशक्ति आदरणीय महिलाओं से एक ही आग्रह कर सकता हूं कि समाज को आपके मार्गदर्शन की बड़ी आवश्यकता है। परिवार रूपी गाड़ी के दो पहियों के समान अगर अपना अस्तित्व बनाए रखते हुए पुरूषों के कंधा से कंधा मिलाकर चला जाएगा तो अपना परिवार आसपड़ोसी और समाज और देश सबमें खुशहाली का समावेश होगा। एक बात का ध्यान अब हमारी माता बहनों को जरूर रखना होगा और वह यह है कि बहु को सास बेटी समझे और सास को बहु माता। कुछ मामलों में देखने में आता है कि घर की दोनों मुखियाओं के वैचारिक मतभेदों मेें तालमेल बनाने में अभाव के चलते कई परेशानियां खड़ी हो जाती है जिससे वो सब तो प्रभावित होते हैं बच्चों पर भी इसका गलत असर पड़ता है और परिवार में आर्थिक तंगी और कलह की शुरूआत हो जाती है। इसे रोकने के लिए दो पीढ़ियों को समझ से काम लेना होगा। अगर हम ऐसा कर लेते हैं तो एक शताब्दी से मनाए जा रहे अंतरराष्टीय महिला दिवस का आज का दिन हम सबके लिए खुशियों का संदेश लाने वाला होगा। 

और यह कठिन काम भी नहीं है। क्या जब हमारी मातृशक्ति 50 साल से ज्यादा की उम्र मेें भी पहाड़ों की ऊंची चोटी को फतेह करने का निर्णय लेकर निकलने की तैयारी कर सकती हैं तो यह तो बहुत छोटा सा फैसला उन्हें लेना है। मेरा मानना है कि नई पीढ़ी अब इस संदर्भ मंे खुले मन से   सोचेगी और सबको साथ लेकर चलेगी। तो सबका का भला होगा।

– रवि कुमार विश्नोई
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
अध्यक्ष – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन
आईना, सोशल मीडिया एसोसिएशन (एसएमए)
MD – www.tazzakhabar.com

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