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शोध कार्यों को आसान एवं सफल बनाने में पुस्तकालय की अहम भूमिका –कुलपति डॉ बलराज सिंह

श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय एवं केंद्रीय पुस्तकालय , जोबनेर में गुरुवार को एक दिवसीय कार्यशाला शोध विधि एवं शोध नैतिकता पर आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बलराज सिंह एवं मुख्य वक्ता डॉ शिवा कनौजिया डिप्टी लाइब्रेरियन जेएनयू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली रहे। विश्वविधालय के कुलपति डॉ बलराज सिंह ने डॉ कनौजिया को बुके एवं शॉल भेंट कर सम्मानित किया। डॉ बलराज सिंह ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आधुनिक तकनीकी के दौर में विद्यार्थियों की शिक्षा प्रणाली में पुस्तकालय एक महत्वपूर्ण पहलू है, यह विद्यार्थियों के ज्ञान कौशल को बढ़ाने का एक अच्छा साधन हैं ।इसके लिए विद्यार्थियों को जागरूक होना चाहिए जिससे उन्हें ज्ञान संग्रहित करने में सहायता मिलेगी तथा इसका उपयोग अपने अध्ययन पर वह शोध कार्यों को आसान एवं सफल बनाने में कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने बताया की गुणवत्ता शोध के लिए की प्‍लेजरिज़म्‌ की जानकारी होना आवश्यक है।
डॉ कनौजिया ने शोध पत्र लिखने की उचित विधि के बारे में बताया जैसे कि यह नकल किया हुआ नहीं होना चाहिए, यह अभिनव होना चाहिए तथा इसमें उचित उद्धरण शामिल होना चाहिए। उन्होंने बताया की शोधकर्ता को पिछले शोध पत्र पढ़कर उचित साहित्य की समीक्षा करनी चाहिए तथा पिछले शोधों में चुनौतियों का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए और उन चुनौतियों को अपने शोध के माध्यम से हल करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बताया की एक शोधकर्ता को अपने विचारों और उधार लिए गए विचारों के बीच अंतर सुनिश्चित करना आना चाहिए । शोध शोधकर्ता के मूल विचारों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने प्‍लेजरिज़म्‌ (साहित्यचोरी )के बारे में बताया जो लेखक की भाषा और विचारों का अनाधिकृत उपयोग है। उन्होंने साहित्यचोरी से बचने के तरीकों के बारे में बताया जैसे कि शोधकर्ता को पिछले प्रकाशित शोधों का संदर्भ लेना चाहिए, उचित पढ़ना चाहिए तथा शोधकर्ता को अपने खुद के विचार लिखने चाहिए। डॉ सिंह ने कहा कि इस प्रकार की कार्यशाला के माध्यम से विद्यार्थियों को गुणवत्ता युक्त शोध कार्य में मदद मिलती है।
डॉ कनौजिया ने शैक्षणिक लेखन और अनुसंधान की जटिलताओं के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने शोध पत्र, शोध प्रबंध, जर्नल और अन्य लेखन लिखने के तरीके के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि लेखन का मुख्य उद्देश्य पाठकों की समझ में सहायता करना है। लेखन औपचारिक भाषा में लिखा जाना चाहिए। यह स्पष्ट, संक्षिप्त, केंद्रित, योजनाबद्ध, संरचित और साक्ष्य द्वारा समर्थित होना चाहिए और लेखक को लेखन के दौरान सांकेतिक शब्दों का उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। यह व्याख्यान छात्रों के लिए बहुत लाभकारी रहा क्योंकि इस व्याख्यान के माध्यम से उन्हें लेखन की सही विधि के बारे में जानकारी मिली और अंत में डॉ कनौजिया ने छात्रों के सभी प्रश्नों व संदेह को दूर किया। कार्यक्रम के संयोजक सचिव डॉ चरतलाल बैरवा, सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष एवं प्रभारी पुस्तकालय ने कार्यशाला के उद्देश्यों के बारे में अवगत कराया। कार्यक्रम का मंच संचालन डॉ राजेश सिंह ने किया।
कार्यक्रम के अंत में पीजी कोऑर्डिनेटर डॉ शैलेश गोदिका ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में सह अधिष्ठाता डॉ शैलेश मार्कर, सहायक लाइब्रेरियन डॉ विनिता चौहान , पीजी कोऑर्डिनेटर डॉ शैलेश गोदिका , डॉ आईएम खान, डॉ गजानंद जाट सहायक निदेशक छात्र कल्याण ,डॉ बलवीर सिंह बधाला , डॉ जितेंद्र , डॉ जीके मित्तल , डॉ बसंत दादरवाल आदि मौजूद रहे तथा एमएससी व पीएचडी के 120 विद्यार्थियों ने भाग लिया

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