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*राजनीतिक उठा पठक का हाल चाल जानते है*  राजनीति में कोई मर्यादा पुरुषोत्तम राम नही बन सकता। राम बन जाने के पहले रा

*राजनीतिक उठा पठक का हाल चाल जानते है* 
राजनीति में कोई मर्यादा पुरुषोत्तम राम नही बन सकता। राम बन जाने के पहले राम कहलाये लेकिन बन भर्मण करके आये तो पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम राम कहलाये। राजनीति की बात करे तो राम ने कहा है कि "जासु राज्य प्रिय प्रजा दुखारी सो नृप होई नरक अधिकारी" राजनीति में आप मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम नहीं थे कि देश ने अचानक सिरमाथे उठा लिया। कुछ तो लोगो की मजबूरी और 80% मनमोहन सरकार की नासमझी की वजह से आपको सरकार बनाने का मौका मिला और आपने कुछ सालों तक बखूबी निभाया भी। लेकिन दिल्ली की गद्दी ही ऐसी है कि आप औरों की तरह संभाल नही पाए, सुनहरा मौका आपको मनमोहन सिंह सरकार की नालायकी  कि वजह से अचानक लोगों का ध्यान आपकी ओर आकर्षित हो गया। मनमोहन सिंह "अनगिनत" दलों की सरकार केंद्र में साथ लेकर चला रहे थे। असल में वे दल नहीं थे, बल्कि दलदल थे जिनके पेट करोड़ों-अरबों के घोटालों के बाद भी नहीं भर रहे थे। उनके मुंह राक्षसी सुरसा के मुंह की भांति खुलते ही गए। ऐसे में लोगों को विकल्प के तौर पर आप दिखाई दिए थे। हमेशा की तरह जनता ने कोई चारा न देखकर आपको अपना लिया। लेकिन आप तो आदमी से ख़ुदा बन बैठे।

इतना समझ लीजिए कि आप कभी लोकप्रिय थे ही नहीं, बल्कि महज एक विकल्प थे। और विकल्प तो हमेशा आते-जाते रहते हैं। अब कपड़े उतर जाने के बाद आपके जाने के द्वार भी खुलने लगे हैं। अभी समय है। सम्भल सकते हैं तो सम्भल जाइएगा।

असत्य और "चालूपंथी" की उम्र बहुत छोटी होती है। भोले-भाले लोगों को ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ता। आपने भारतवर्ष के राजनीतिक खेतों में जो बोया था, यूपी में उसके अंकुर फूट पड़े हैं। अभी तो हालांकि ये अंगड़ाई है आगे आपको बहुत लड़ाई देखने समझने और सुनने को मिलेगी।इसी के साथ यह कहावत कि "जो बोओगे वही काटोगे" चरितार्थ हो गई है। दम्भ तो सुदर्शन चक्र का भी नहीं रहा। जो दम्भी हो जाता है, उसे न श्रीराम बख़्सते हैं ना श्रीकृष्ण। मन के अंदर कुटिलता और बाहर-बाहर से भगवानों की चाटुकारिता करके इन्द्रासन प्राप्त नहीं होता ना कोई कालजयी हो जाता है। ऐसा होता तो दुनिया में आज कोई एक भी वह नास्तिक जीवित न दिखता जो हमेशा परमेश्वर के अस्तित्व को ख़ारिज करता रहता है। आपने विष बोया है तो आपका उर्वरक खेत अमृत नहीं उगलेगा। उसे तो वही उगलना है जो आपने बोया था। यही विधि का विधान है। और विधान बिधि जब बन जाता है तो किसी को छोड़ता नही। वो आपको भी न छोडगा।

यह राजनीति है। राजनीति में हमेशा  भावनाओं के लिए कोई स्थाई जगह नहीं है। यह निष्ठुर है।अत्याचारी है। क्रूर है। विषकन्या है। यह ऐसा काल चक्र है जो जितनी विष भरी सियासत करेगा वह निश्चित ही एक दिवस धरासाई होकर मारा जाएगा। काल की भांति कपाल और कृपाल निकल आते है। जो सुनामी में समंदर की गहराई में जितना उतरेगा उसका उतना ही डूबना निश्चित है। राजनीतिक लहरें परस्पर आती-जाती रहती हैं। किसी को किनारे ले जाकर पटक जाती हैं तो किसी को भंवर में उलझा कर डूबा देती है। किसी को धरासाई तो किसी को धोबिया पाठ याद दिला देती है, जो 2017 में आपके गुणगान कर रहे थे आज आपसे भाग रहे है यही राजनीति है। राजनीतिक लहरों का क्या है। ये कोई सीबीआई, ईडी, आईटी या एनसीबी थोड़ी है कि आपके इशारों पर भांगड़ा डालती रहे और हटे ही नहीं। तारक मेहता का उल्टा चश्मा में दया भाभी कभी भी जैसे गर्भा कर लेती है वैसे ही जनता आपसे भी डांडिया करवाएगी। सोचकर - समझकर आपसे उम्मीद लगाए बैठी जनता अब रणनीतिकार बन गई है, डिजिटल दुनिया मे जितने आगे आप है उससे आगे जनता है, इसीलिए जनता को जनार्दन कहा जाता है,

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