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रण क्षेत्र में कभी कभी, पीछे हट जाना पड़ता है। डॉ अ कीर्तिवर्धन   कभी कभी दुश्मन को भी, गले लगाना पड़ता है, र

रण क्षेत्र में कभी कभी, पीछे हट जाना पड़ता है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन

 
कभी कभी दुश्मन को भी, गले लगाना पड़ता है,
रण क्षेत्र में कभी कभी, पीछे हट जाना पड़ता है।
इसका मतलब यह नहीं, कि हमने मानी हार यहाँ,
ताकत को संजोकर फिर, सबक सिखाना पड़ता है।
कभी कह रहे हमें शिखंडी, कभी नपुंशक कहते हो,
चक्रव्यूह के भेदन में तो, हुनर दिखाना पड़ता है।
सभी विपक्षी ताल ठोकते, मर्यादाओं के तार तोड़ते,
हमको तो अपनों का भी, गुस्सा सहना पड़ता है।
कभी कन्हैया, ओवेशी, टिकैत की तुम बात करो,
कुछ संसद की मजबूरी हैं, हाथ मिलाना पड़ता है।
दुश्मन के हमलों को तो, चुटकी में निपटा दें हम,
अपनों के हमलों पर, मौन रह जाना पड़ता है।
नहीं भरोसा तोडा हमने, कुछ हम पर विश्वास करो,
नहीं बचेंगें देश के दुश्मन, जड़ से मिटाना पड़ता है।
दुश्मन की चालों में आकर, नहीं वीरता शीश कटाना,
बेनकाब कर गद्दारों को, इतिहास बदलना पड़ता है।
ठुमक ठुमक कर नाच रहे, और जोश की बात करें,
पाक चीन के दल्लों का, निस्तारण करना पड़ता है।

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