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धर्म का नाश होते ही, संसार का भी नाश होने लगता है जो सोचते हैं कि मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बावजूद हमारी आर्थि

धर्म का नाश होते ही, संसार का भी नाश होने लगता है

जो सोचते हैं कि मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बावजूद हमारी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है जबकि बेईमान और भष्ट लोग दिन ब दिन धनी होते जा रहे हैं। इससे मन में निराश होता और लोगों ईमानदारी को बोझ समझकर उसी कीचर में उतरने की कोशिश करते हैं जिसमें डूबकर भ्रष्ट लोग धनवान हो रहे हैं। ऐसा करने से हो सकता है कि धन आ जाए लेकिन धर्म का लोप हो जाता है।

शास्त्रों में कहा गया है कि धर्म की एक लौ भी संसार को रौशन कर देती है और अधर्म के कई मशाल मिलकर भी एक छोटे से हिस्से का अंधियारा दूर नहीं कर पाते। अगर सभी लोग भ्रष्टाचार में लिप्त होने लगे तो धर्म का पूरी तरह नाश हो जाएगा। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा गया है कि जब-जब धर्म का नाश होता है तब-तब धर्म की स्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं। भगवान का जब अवतार होता है तब महाभारत जैसी घटना होती है। राम रावण युद्ध होता है, जिसमें सैकड़ों करोड़ों लोगों को अपनी जान की अहूति देनी पड़ती है।

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