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बेटियों के पंखों को उड़ान का अवसर युवतियों के विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है।

बेटियों के पंखों को उड़ान का अवसर
युवतियों के विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है।

केंद्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल ने गुरुवार 16 दिसम्बर को युवतियों के विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है। यह कानून यदि लागू हो गया तो सभी धर्मों, जातियों और वर्गों में युवतियों के विवाह की न्यूनतम आयु बदल जायेगी। जाहिर है कि अपने इस फैसले से मोदी सरकार ने बेटियों के पंखों को उड़ान का मौका प्रदान करते हुए उनके सपनों को साकार करने की दिशा में सकारात्मक पहल की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते वर्ष स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए  लड़कियों और लड़कों के विवाह की न्यूनतम उम्र एक समान करने की घोषणा की थी। पीएम मोदी के कार्यकाल में विवाह सम्बंधी यह दूसरा बड़ा सुधारात्मक कदम है, जोकि कानून बन जाने के बाद समान रूप से सभी धर्मों, वर्गों और जातियों के लोगों पर लागू होगा। इससे पहले प्रवासी भारतीयों के विवाह को 30 दिन अर्थात् एक माह के भीतर पंजीकृत कराने का बड़ा कदम उठाया गया।

युवतियों के एक बड़े वर्ग ने इस फैसले के लिए केंद्र सरकार  का हार्दिक आभार व्यक्त किया है। वास्तविकता यह है कि अभी तक सिर्फ महिला-पुरुष की समानता की बड़ी बडी बातें होती थीं, लेकिन पहली बार केंद्र की मोदी सरकार ने इसे अमली जामा पहनाने की तरफ कदम बढ़ाया है। लड़कियों के विकास के लिए इस तरह का निर्णय बहुत पहले ले लिया जाना चाहिए था, लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। विभिन्न धर्मों और जातियों से ताल्लुक रखने वाली युवतियों ने मोदी कैबिनेट के इस फैसले का खुले दिल से स्वागत किया है और राहत की सांस ली है।

कई परिवारों में लड़कियों को मौजूदा परिवेश में भी भार समझा जाता है। 18 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद लड़कियों को लेकर जो सामाजिक दबाव रहता है, वह उनके परिवार पर भी दिखाई देने लगता है। स्थिति यहां तक पहुंच जाती है कि 18 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद तमाम युवतियां तो अपने घर परिवार और समाज की नजर में खटकने लगती हैं और जैसे तैसे किसी भी लड़के के साथ उनका विवाह रचा दिया जाता है। बालिग हो जाने के बावजूद लड़कियों से न तो उनकी राय जानी जाती है और न ही उनकी इच्छा की कोई कद्र होती है। ऐसी स्थिति में लड़कियां अपनी जिंदगी सदैव दूसरे के नजरिए से जीने के लिए विवश हो जाती हैं। 

विवाह से पूर्व  लड़कियों को उसके लिए मानसिक व शारीरिक रूप से विकसित करने की  आवश्यकता है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2020 को लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन के दौरान कहा था कि बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि उनका विवाह सही वक्त पर हो।

अभी तक देश में लागू कानून के मुताबिक, युवकों के विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिलाओं की 18 वर्ष है। इससे कम आयु में विवाह करना बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के तहत गैर-कानूनी अपराध है। इसके लिए दो वर्ष की कैद और एक लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है। हालांकि केंद्र सरकार अब इस विधेयक के पारित होने के बाद बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी।

बेटियों के विवाह की न्यूनतम आयु 21  वर्ष करने की सिफारिश करने वाली जया जेटली के नेतृत्व वाली टास्क फोर्स का भी कहना था कि ‘पहले शिशु को जन्म देते समय युवतियों की आयु 21 वर्ष होनी चाहिए. विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों, समाज के आर्थिक, सामाजिक ढांचे और सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’

हालांकि, यहां यह बात भी समझने की आवश्यकता है कि विवाह की आयु बढ़ाने का यह तात्पर्य कतई नहीं है कि लड़कियां शादी को अपनी जिंदगी का केंद्र बना लें।  लड़कियों के लिए आजादी और मानसिक रूप से मजबूती भी मायने रखती है। इसके लिए उनका शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है। लड़कियों को कम से कम अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए घर छोड़कर तो नहीं भागना पड़ेगा। गौरतलब है कि बिहार में कुछ समय पूर्व एक लड़की की शादी उसकी इच्छा के बगैर करवा दी गई। वह आगे पढ़ना चाहती थी। इसलिए वह ससुराल से भाग गई।

विवाह की आयु 21 वर्ष  होने पर लड़कियों को शिक्षित होने का अवसर मिलेगा, तभी तो वे पैसे कमाएंगी और स्वावलंबी बनेंगी। 18 साल होते ही खासकर गांवों, कस्बों और छोटे शहरों की लड़कियों पर शादी का दबाव बनने लगता है, वे समझ ही नहीं पातीं कि वे शादी करके ससुराल में जा बसें या अपनी शिक्षा जारी रखें। सच तो यह है कि इस आयु तक लड़कियां मानसिक रूप से पूरी तरह परिपक्व नहीं हो पाती हैं।  आखिरकार उन्हें परिवार वालों की मर्जी से चलना पड़ता है और इस तरह उनके ख्वाब अधूरे रह जाते हैं। पढ़ाई छूटने के कारण वे घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कई परिवारों में तो औरते ही औरत की दुश्मन बन जाती हैं। कई लड़कियों की तो कम आयु में प्रसव के दौरान मौत तक हो जाती है। 

बदलते परिवेश में लड़कियों के करियर और पढ़ाई के लिहाज से 18 वर्ष की आयु भी कम ही थी। उनके विवाह की आयु 21 वर्ष किया जाना समय की मांग है, जो अवश्य ही पूरी होनी चाहिए। सरकार के इस फैसले से शादी से पूर्व लड़कियों को शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित होने का अवसर मिलेगा। सरकार का यह फैसला युवा उम्र की दहलीज पर खड़ी लड़कियों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होगा। शादी की उम्र बढ़ाने के इस निर्णय से बेटियां और सक्षम बनेंगी। खास तौर पर पढ़ाई और रोजगार के क्षेत्र में उन्हें और बेहतर अवसर मिलेंगे।

हालांकि यह भी सच है कि पुरुष प्रधान समाज और रूढ़िवादिता में अंधविश्वास करने वाले लोग मोदी सरकार के इस फैसले को पचा नहीं पाएंगे और वे इसका पुरजोर विरोध करेंगे। इसके बावजूद यह उम्मीद ​की जानी चाहिए कि मोदी सरकार इस विधेयक को कानूनी जामा पहनाकर बेटियों के हित में उठाये गये इस कदम को जल्द से जल्द लागू करेगी।

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