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"मैंने एक नग चुना और तुम्हें अर्पित कर दिया"संतुलित बोलें18 दिन के युद्ध ने, द्रौपदी की उम्र को 80

"मैंने एक नग चुना और तुम्हें अर्पित कर दिया"

संतुलित बोलें

18 दिन के युद्ध ने, द्रौपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था। शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी।

शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था...
पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ते थे।

अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी "द्रौपदी" हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी, शून्य को निहार रही थी।

तभी, श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं।
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है... 
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं और कुछ देर उसे रोने देते हैं व थोड़ी देर बाद, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं!

द्रौपदी: "यह क्या हो गया सखा? ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था!"

कृष्ण : "नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली...
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती! वह हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है...
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थीं और, तुम सफल हुईं।
तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ! सिर्फ दुर्योधन और दुःशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए।
तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए।"

द्रौपदी: "सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए?"

कृष्ण: "नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें कर्मों के परिणाम की वास्तविकता से अवगत कराने आया हूँ।"

द्रौपदी : "तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से सिर्फ़ मैं ही उत्तरदायी हूँ?

कृष्ण: "नहीं! तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो... लेकिन अगर तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखतीं तो, इतना कष्ट कभी नहीं पातीं!

द्रौपद : "मैं क्या कर सकती थी कृष्ण?"

कृष्ण: "तुम बहुत कुछ कर सकती थीं!
जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ... तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करतीं और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देतीं तो, शायद परिणाम कुछ और होते! 
इसके बाद कुंती ने जब तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया, उस समय तुम अगर उसे स्वीकार नहीं करतीं तो भी, परिणाम कुछ और होते! 
उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया कि- 'अंधों के पुत्र अंधे ही होते हैं'... अगर ऐसा नहीं कहतीं तो, तुम्हारा चीरहरण नहीं होता और परिस्थितियाँ कुछ और होतीं! हे द्रौपदी, हमारे  *शब्द* भी हमारे कर्म होते हैं!" 
द्रौपदी अतीत के सागर में गोते लगाते हुए, कृष्ण के एक-एक शब्द को ध्यानपूर्वक 'गुनती' रही!

अतः, मित्रों, हमें अपने शब्दों को बोलने से पहले तौलना बहुत ज़रूरी होता है अन्यथा, उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवेश को दुःखी करते रहते हैं!
संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसका "ज़हर" उसके "दाँतों" में नहीं, 
"शब्दों " में है! 
इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करना चाहिए। 

ऐसे शब्दों का प्रयोग कीजिए जिनसे किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे। 
क्योंकि सारा का सारा महाभारत, हमारे अंदर ही छिपा हुआ है

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