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ब्रह्मकपाल : पितरो का यहाँ करते हैं श्राद्ध

हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन अमावस्या तक लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा को मुक्ति मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण के लिए ब्रह्मकपाल जाया करते हैं।

मान्यता है कि विश्व में एकमात्र श्री बदरीनाथ धाम ही ऐसा है जहां ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान के बाद पितृ मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। यहां पर पितरों का उद्धार होता है। इसलिए इसे पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है।

ब्रह्मकपाल के बाद कहीं भी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं है। पिंडदान लिए पुष्कर, हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया प्रसिद्ध हैं लेकिन ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान आठ गुना फलदायी है। माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल में पितर तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है। भू बैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रहमकपाल तीर्थ पर भी कोरोना की आपदा की मार श्राद्ध पक्ष में दिख रही है। बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्राद्ध पक्ष में पिंडदान के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हिंदू धर्म के लोग जाते थे। श्राद्ध पक्ष से पूर्व बदरीनाथ की यात्रा सुचारु न होने के चलते इस बार श्रद्धालु पितृक्षेत्रों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। *पुराणों में लिखा है…* ‘‘आयुः प्रजां धनं विद्यां, स्वर्गं मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितरः मोक्षतर्पिता।। मान्यता है कि जब ब्रह्मा ने अपनी पुत्री पृथ्वी पर गलत दृष्टि डाली तो, शिव ने त्रिशूल से ब्रह्मा का एक सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्महत्या का पाप भी लगा था। महादेव शिव इस पाप के निवारण के लिए संपूर्ण आर्यावर्त भारत भूमि के अनेक तीर्थ स्थानों पर गये परंतु फिर भी इस जघन्य पाप से मुक्ति नहीं मिली। जब वे अपने धाम कैलास पर जा रहे थे तो बद्रीकाश्रम में अलकापुरी कुबेर नगरी से आ रही मां अलकनंदा में स्नान करके भगवान शिव बद्रीनाथ धाम की ओर बढ़ने लगे कि 200 मी. पूर्व ही एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके हाथ से वहीं नीचे गिर गया। बद्रीनाथ धाम के समीप जिस स्थान पर वह सिर (कपाल) गिरा वह स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और भगवान देवाधिदेवमहादेव को इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।

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