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सत्य परेशान हो सकता है पराजित नही -पं०राघवेंद्र शास्त्री वीजापुर झंगटौर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन क

सत्य परेशान हो सकता है पराजित नही -पं०राघवेंद्र शास्त्री


सलेमपुर/देवरिया के ग्राम वीजापुर झंगटौर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन केरल से पधारे कथावाचक पं0 राघवेंद्र शास्त्री जी ने कहा कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन परास्त नहीं हो सकता। सत्य की विजय अवश्य होती है और असत्य को हार का सामना करना पड़ता है। इसलिए मनुष्य को सत्य मार्ग पर ही चलना चाहिए। उन्होंने प्रहलाद चरित्र का वर्णन करते हुए कथा का रसपान कराया उन्होंने कहा कि हिरण्यकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और कहा कि मांगों जो मांगना है। यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने अपनी आंखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं,सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। कथा सुनाते हुए शास्त्री ने कहा कि हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। यह बात उनके पिता हिरण्यकश्यप को बर्दाश्त नहीं थी। सारी कोशिश के बाद भी हिरण्यकश्यप प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोक नहीं पाया तो उसने उसे मारने के बारे में सोचा। फिर एक दिन प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को भगवान शंकर से वरदान मिला हुआ था। उसे वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर और प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और प्रहलाद की जगह होलिका आग में भस्म हो गई।
प्रहलाद आज भी पूरी दुनिया में विष्णु भक्त के नाम से पुकारे जाते हैं। उन्होंने कथा में अन्य प्रसंगों को सुनाते हुए कहा कि भागवत कथा समाज में छिपी कुरीतियों को दूर करने का संदेश देती है। इसलिए लोगों को कथा जरूर सुननी चाहिए। कथा में
गुरु भगवानदास शास्त्री जी के अलावा यजमान विंध्यवासिनी देवी,कृष्णा कांत मिश्र,भूपेंद्र मिश्र,अनिल मिश्र,सुनील मिश्र,रविशंकर मिश्र,अजय दुबे वत्स,बृजेश दुबे आदि श्रोता मौजूद रहे।

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