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विवेकानंद जयंती विशेष : एक युग, जिसका अंत कभी हुआ ही नहीं, युवाओं के प्रेरणास्‍त्रोत उठो, जागो और तब तक मत रुको जब

विवेकानंद जयंती विशेष : एक युग, जिसका अंत कभी हुआ ही नहीं, युवाओं के प्रेरणास्‍त्रोत


उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रो‍त, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में हुआ। इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। विवेकानंद दो शब्दों द्वारा बना है। विवेक+आनंद। विवेक संस्कृत मूल का शब्द है। विवेक का अर्थ होता है बुद्धि और आनंद का शब्दिक अर्थ होता है- खुशियां

उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रमुख कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके ये विचार और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। उनके लिए प्रेरणा का एक उम्दा स्त्रोत साबित हो सकते हैं।

जब भी कभी भारतीय संस्कृति या हिंदू धर्म का मुद्दा उठता है अथवा इस पर विचार-विमर्श किया जाता है तो स्वामी विवेकानंद के विचारों का स्मरण ज़रूर किया जाता है। आज तक उनके चरित्र, उनके विचारों, उनके आदर्शों के विषय में जितना भी पढ़ पाया हूँ, उसे एक लेख में समेट देने का अर्थ होगा रत्नाकर को दरिया के समान पेश कर देना। आज यहाँ उनके एवं उनके ऐतिहासिक कार्यों की चर्चा करने से पहले उनकी जन्म तारीख, जन्म स्थान आदि का विवरण पेश करना मैं ज़रूरी नहीं समझता, क्योंकि आज आवश्यकता है उनके आदर्शों को अपनाने की, ना की उनसे जुड़े कुछ तथ्यों को रट लेने की।

सन् 1897 में मद्रास में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था 'जगत में बड़ी-बड़ी विजयी जातियां हो चुकी हैं। हम भी महान विजेता रह चुके हैं। हमारी विजय की गाथा को महान सम्राट अशोक ने धर्म और आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया है और अब समय आ गया है कि भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। यही मेरे जीवन का स्वप्न है और मैं चाहता हूं कि तुम में से प्रत्येक, जो कि मेरी बातें सुन रहा है, अपने-अपने मन में उसका पोषण करे और कार्यरूप में परिणित किए बिना न छोड़ें।
युवाओं के लिए उनका कहना था कि पहले अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाओ, मैदान में जाकर खेलो, कसरत करो ताकि स्वस्थ-पुष्ट शरीर से धर्म-अध्यात्म ग्रंथों में बताए आदर्शो में आचरण कर सको. आज जरूरत है ताकत और आत्म विश्वास की, आप में होनी चाहिए फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल।
अपने जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने न केवल पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया, बल्कि लाखों लोगों से मिले और उनका दुख-दर्द भी बांटा। इसी क्रम में हिमालय के अलावा, वे सुदूर दक्षिणवर्ती राज्यों में भी गए, जहां उनकी मुलाकात गरीब और अशिक्षित लोगों से भी हुई, साथ ही साथ धर्म संबंधित कई विद्रूपताएं भी उनके सामने आईं। इसके आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश की रीढ़ 'युवा' अशिक्षित रहेंगे, तब तक आजादी मिलना और गरीबी हटाना कठिन होगा, इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोए हुए युवकों को जगाने का काम शुरू कर दिया।

विवेकानंद नहीं नरेंद्रनीथ था बचपन का नाम, कैसे बन गए स्वामी विवेकानंद, जानें ये रोचक बातें
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था. लेकिन उनका नाम बचपन से विवेकानंद नहीं था. जन्‍म के बाद उनका नाम नरेंद्रनीथ दत्त रखा गया था. आखिरी उनका नाम स्‍वामि विवेकानंद कैसे पडा. ज्‍यादातर लोगों का मानना है कि उनके गुरु रामकृष्‍ण परमहंस ने उन्‍हें यह नाम दिया था. लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल, यह नाम उनके गुरु ने नहीं, बल्‍क‍ि किसी और ने दिया था. दरअसल,स्वामी जी को अमेरिका जाना था. लेकिन इसके लिये उनके पास पैसे नहीं थे. उनकी इस पूरी यात्रा का खर्च राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने उठाया था और उन्होंने ही स्वामी जी को स्‍वामी विवेकानंद का नाम भी दिया. इसका उल्‍लेख प्रसिद्ध फ्रांसिसी लेखक रोमां रोलां ने अपनी किताब ‘द लाइफ ऑफ विवेकानंद एंड द यूनिवर्सल गोस्पल’ में भी किया है. शिकागो में आयोजित 1891 में विश्‍वधर्म संसद में जाने के लिए राजा के कहने पर ही स्वामीजी ने यही नाम स्वीकार किया था. 
                                       अंजनी मिश्रा

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