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हिंदी दिवस गंगा सी पावन है हिंदी, हिंदी के गीत सुनाती हूं। हिंदी के स्वर संगम से, अपनी कविता रच पाती हूं। मीठे

हिंदी दिवस

गंगा सी पावन है हिंदी,
हिंदी के गीत सुनाती हूं।
हिंदी के स्वर संगम से,
अपनी कविता रच पाती हूं।
मीठे मीठे अलंकारों से,
कविता अपनी सजाती हूं।
दोहे और मुहावरों से,
नित नए सृजन कर पाती हूं।
मीरा, सूर,कबीर हैं जन्मे,
इसी पावन धरती पर।
लिखा है जो उन सबने,
क्या होगा कही उतना पावन।
वेद उपनिषद से ग्रन्थ यहां,
रामायण,गीता का सार यहां।
है प्रेमचन्द,रसखान यहां,
महादेवी, पंत,निराला यहां।
जिस देश में साहित्यकारों का,
महाकुंभ सा मेला रहता है।
मै उस देश की वासी हूं,
मातृ भाषा को नमन करती हूं।
हिंदी दिवस के सुअवसर पर,
अपनी कलम से कुछ रचती हूं।
अपनी कलम से कुछ रचती हूं।।

              रश्मि पांडेय, शुभि
                डिंडोरी, मध्यप्रदेश

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