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*कच्चा तेल 7.3 डॉलर सस्ता, कंपनियां दाम घटाएं तो पेट्रोल ₹8 सस्ता हो जाए, लेकिन कोई राहत नहीं* सरकारी तेल कंपनियों

*कच्चा तेल 7.3 डॉलर सस्ता, कंपनियां दाम घटाएं तो पेट्रोल ₹8 सस्ता हो जाए, लेकिन कोई राहत नहीं*

सरकारी तेल कंपनियों की मुनाफाखोरी एक बार फिर हमारी जेब पर भारी पड़ रही है. दिसंबर में जैसे कच्चे तेल के दाम घटे हैं उसी हिसाब से कंपनियां दाम घटातीं तो पेट्रोल 8 रु. और डीजल 7 रु./लीटर सस्ता होता. दिवाली से ठीक पहले केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 5 रु./लीटर, जबकि डीजल पर 10 रु./ लीटर घटाई थी. ज्यादातर राज्यों ने भी वैट घटाया. इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतों में थोड़ी कमी आई.

इसके बाद अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों के चलते कच्चे तेल की कीमतों में कमी आनी शुरू हो गई. क्रूड नवंबर के 80.64 डॉलर के मुकाबले दिसंबर में 73.30 डॉलर/प्रति बैरल रहा. देश में पेट्रोल-डीजल के दाम रोज तय होते हैं. ऐसे में जब दाम घटाने की बारी आई तो सरकारी कंपनियां लोगों को राहत देने के बजाए मुनाफाखोरी में जुट गईं.

रेटिंग एजेंसी इक्रा के वाइस प्रेसीडेंट और पेट्रोलियम मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत वशिष्ठ कहते हैं कि कीमतों की समीक्षा का उद्देश्य था कि क्रूड की कीमतों में तेजी आए तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े, क्रूड सस्ता हो तो दाम घटे. कई बार सियासी कारणों से दाम कम किए जाते हैं, जिसकी भरपाई कंपनियां बाद में करती हैं.

अगस्त में क्रूड 3.74 डॉलर/बैरल सस्ता हुआ तो कंपनियों ने पेट्रोल सिर्फ 65 पैसे सस्ता किया. वहीं, सितंबर में क्रूड जब 3.33 डॉलर/बैरल महंगा हुआ तो पेट्रोल 3.85 रु./लीटर महंगा कर दिया गया. नवंबर में क्रूड की कीमतों में थोड़ी कमी आई, लेकिन पेट्रोल के दाम बढ़ते चले गए. पेट्रोल की कीमतों में आखिरी कटौती 5 सितंबर को मात्र 15 पैसे की हुई थी.

तेल कंपनियों आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल के सितंबर तिमाही के नतीजों को देखें तो इनका कर पूर्व मुनाफा प्री-कोविड लेवल से 20 गुना तक बढ़ा है. आईओसीएल का मुनाफा सितंबर-2019 में 395 करोड़ था, सितंबर 2021 में 8370 करोड़ रु. हो गया.

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